रायपुर। प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी नई सरकार की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके साथ ही 2018 की तुलना में थोड़ा कम पड़े मतदान को लेकर गुणा-भाग किया जा रहा है। पत्रकारों से लेकर जिला कलेक्टरों से भी बात करके निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है। दलों के घोषणा पत्रों का किसे, कितना लाभ मिल रहा है, अपने कक्ष में आने वाले हर व्यक्ति से इस विषय पर बात की जा रही है। कुल मिलाकर, जितनी अधीरता से राजनीतिक दल और मतदाता नई सरकार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, प्रशासनिक अधिकारियों में भी वही अधीरता देखी जा रही है। मतदान के साथ ही इनकी चुनावी व्यस्तता फिलहाल न्यूनतम हो गई है। आचार संहिता के कारण शासन और मंत्रियों के साथ कोई बैठक नहीं हो रही है। इसलिए कार्यालय अवधि का बड़ा समय चुनावी गुणा-भाग में ही बीत रहा है। प्रदेश में नई सरकार के आने में अब केवल 13 दिन ही शेष हैं। तीन दिसंबर को दोपहर एक बजे तक यह लगभग स्पष्ट हो जाएगा कि प्रदेश में किस पार्टी की सरकार बन रही है। फिलहाल तबतक चर्चा के साथ केवल अनुमान ही लगाए जा सकते हैं।
ओपी चौधरी और टेकाम की सबसे ज्यादा चर्चा
मंत्रालय में सबसे अधिक आइएएस ओपी चौधरी और नीलकंठ टेकाम को लेकर चर्चा गर्म है। आइएएस अफसर राजनीति में उतरे हैं, तो अफसरों की यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि प्रशासन से निकलकर कोई राजनीति में कितना सफल हो सकता है। चौधरी भाजपा की टिकट पर रायगढ़ और नीलकंठ टेकाम भी भाजपा की टिकट पर केशकाल से चुनावी मैदान में हैं। अधिकांश अफसर इसी बात से चिंतित दिख रहे हैं कि कुछ दिनों में चुनाव है, अगर सत्ता में फेरबदल हुआ तो उनका क्या होगा। पांच साल से कांग्रेस की सरकार में जो सेटिंग जमी है वह तो खतरे में आ जाएगी। जिन्हें सरकार का ज्यादा करीबी माना जाता है वे ज्यादा चिंतित हैं। इसी तरह जो भाजपा के कार्यकाल में करीबी रहे हैं और सरकार में बैकफुट पर रहे हैं उन्हें भी चिंता है कि सरकार किसकी बनेगी?
त्रिशंकु विधानसभा बनी तो क्या होगा
चर्चा यह भी है कि अगर कांटे का मुकाबला हुआ और निर्दलीय व अन्य दलों के खाते में सीट गई तो त्रिशंकु विधानसभा हो सकती है। इस पर एकराय बनाना मुश्किल है। त्रिशंकु के अलावा बस्तर-सरगुजा को लेकर भी चर्चा हो रही है। बस्तर संभाग की 12 सीटों पर अभी कांग्रेस के विधायक हैं। इसी तरह सरगुजा की 14 सीटों पर कांग्रेस के विधायक काबिज हैं। बस्तर-सरगुजा में कांग्रेस-भाजपा के खाते में कितनी सीट जा रही है। इसे लेकर भी चर्चा तेज हो चुकी है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति अफसरों की धमक
चुनाव अफसरों की चर्चा के बीच केंद्र बिंदु बनने का विषय इसलिए भी है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में अफसरों की धमक बढ़ती जा रही है। इस बार दो आइएएस चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस- भाजपा दोनों ही दलों में एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी राजनीति में दायित्व संभाल रहे हैं। कई आइएएस, राज्य प्रशासनिक सेवा, पुलिस और शिक्षक चुनावी राजनीति में परचम लहरा चुके हैं। पिछले चुनाव में रिटायर आइएएस शिशुपाल सोरी कांग्रेस की टिकट पर कांकेर से विधायक चुने गए। वहीं, वीआरएस लेकर चुनाव मैदान में उतरे आइएएस ओपी चौधरी को खरसिया सीट पर हार का सामना करना पड़ा था इस बार रायगढ़ से चुनावी मैदान में हैं। पार्टियों के संगठन की जिम्मेदारी भी पूर्व प्रमुख सचिव रहे गणेश शंकर मिश्रा, सरजियस मिंज सहित अन्य अधिकारी संभाल रहे हैं।
प्रदेश की राजनीति में सबसे सफल ब्यूरोक्रेट के रूप में प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने पहचान बनाई। पिछले चुनाव में एसीएस रहे सरजियस मिंज ने कांग्रेस का दामन थामा था। उम्मीद थी कि उनको जशपुर या कुनकुरी से चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि उनकी टिकट पक्की नहीं हो पाई। मिंज के पहले रिटायर्ड आइएएस आरपीएस त्यागी, इस्तीफा देने वाले डीएसपी विभोर सिंह व निरीक्षक गिरिजा शंकर जौहर कांग्रेस में गए थे। विभोर को कांग्रेस ने कोटा से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी से चुनाव हार गए। सेवानिवृत्त आइजी रविंद्र भेड़िया की पत्नी अनिला भेड़िया अभी डौंडीलोहारा से चुनावी मैदान में हैं। आइजी रहे आरसी पटेल भी रिटायर होने के बाद कांग्रेस खेमे में गए थे। वहीं, पूर्व डीजी राजीव श्रीवास्तव ने पिछले लोकसभा चुनाव के समय भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन चुनाव के बाद वह सामाजिक गतिविधियों में आगे बढ़ गए। सेवानिवृत्त आइपीएस अकबर राम कार्राम ने निर्दलीय ताल ठोकी थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। इस साल चुनाव से पहले पूर्व आइएएस अधिकारी जिनेविवा किंडो कांग्रेस पार्टी में शामिल हुई हैं।