
दीपावली पर्व धन, संपदा, खुशी, उत्साह, उमंग का पर्व है। क्षेत्र विशेष इसके पूजन विधि थोड़ा बहुत भिन्न रहता है। वैसे हमारे क्षेत्र में भी बड़ी दीपावली के लिए मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। इसमे मां को विभिन्न प्रकार के प्रसाद रूपी स्वादिष्ट मिठाई व पकवान के भोग लगाए जाते हैं। ठीक इसी तरह इस क्षेत्र में मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना होती है, पर यहां इन स्वादिष्ट भोग रूपी प्रसाद के साथ ही मुख्य प्रसाद के तौर पर मां को लाई व बताशे का भी भोग लगाया जाता है।
हमारा प्रदेश व जिला कृषि प्रधान है। यहां का मुख्य फसल धान है और मुख्य आहार भी यह है। ऐसे में धान का महत्व है। वहीं दीपावली के समय इस धान के महत्व लाई के रूप में और भी बढ़ जाता है। इसी तरह मीठे बताशे भी इस त्योहार का खास अंग है। बताशे को ध्यान से दिखा जाए तो यह चंद्रमा की तरह दिखता है।
इसका भी विशेष महत्व क्षेत्र के रहवासी समझते हैं और जानते हैं कि इसके माध्यम से मां लक्ष्मी को खुश कर धन, संपदा से परिपूर्ण हो सकते है। यह सीधे मां लक्ष्मी से जुड़ा हुआ है। मान्यता यह है कि धान एक प्रमुख अन्न है और इससे ही लाई बनती है। दीपावली से पहले धान की फसल तैयार होती है। इस वजह से मां लक्ष्मी को फसल के पहले भोग के रूप में लाई चढ़ाई जाती है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है।
धन वैभव के दाता शुक्र ग्रह को माना जाता है। शुक्र का प्रमुख धान्य धान ही होता है। शुक्र को खुश रखने के लिए दीपावली पूजन में लाई प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। लाई के साथ बताशे भी खाए और बांटे जाते हैं। बताशे चंद्रमा का द्योतक है और मां लक्ष्मी को बताशे पसंद है। इन मान्यताओं को मानते हुए ही यहां के दीपावली की पूजा में जब तक ये दोनों ने चढ़े तो पूजा को पूरा नहीं माना जाता है। इसी वजह से लाई-बताशे इस क्षेत्र में दीपावली के मुख्य प्रसाद बने हुए हैं और यह परपंरा लगातार चलती ही जा रही है।